सलूम्बर में तंवरो का आगमन
- बड़वा गुलाबजी** के पत्र संवत् 1925 (सन् 1868ई.) के अनुसार सलूम्बर के तंवरो के पुर्वज पाटन-तंवरावाटी क्षेत्र से आए थे।
* इस पत्र मे आसलपुर के बड़वा गुलाबजी के पुर्वजो कि कुछ वंशावली भी लिखी हुई है जो इस प्रकार है मेहरामजी का पोता जीवणजी, जीवणजी का पोता हमीरजी, हमीर का बेटा गुलाबजी]
[[इस पत्र से ज्ञात होता है कि संवत् 1986(ई.1929) मे किशोरपुरा गांव से ताजीमदार संदरसिंह तंवर के पुत्र किशोरसिंह तंवर सलूम्बर के तंवरो को पुन: वापस लेने के लिए आए थे**]]
[[इन दोनो पत्रो के अनुसार और सलूम्बर के तंवरो के पुर्वजो कि मान्यता के अनुसार तो यही लगता है कि सलूम्बर(बोरज तँवरान) के पुर्वज किशोरपुरा(पाटन का नजदीकी गांव) या पाटन से आए थे]]
दन्तकथा- अनोपसिंह जी तंवर कि पत्नी ने जो दन्तकथा उनके पुत्रो को सुनाई थी उसके अनुसार सलूम्बर का रावत केसरीसिंह जी चुंडावत दिल्ली दरबार मे ओरंगजेब के पास गए थे, वहा बादशाह से उनकी कुछ अनबन हो गई तो बादशाह ने उन्हे मरवाना चाहा लेकिन वहा कुछ तंवर सरदारो ने रावतजी की जान बचाई थी और उन तंवरो ने शाही गणगौर भी जीत ली थी, तब रावतजी ने तंवर राजपूतो को गणगौर लेकर सलूम्बर आने को कहा और सलूम्बर मे जागीरी देने कि बात कही थी, तब वे गणगौर लेकर रावत जी के साथ सलूम्बर आ गए थे, इस पुरे घटनाक्रम के समय कुछ तंवर राजपूत वीरगति को भी प्राप्त हुए थे।
यह घटना सलूम्बर के जागीरदारो कि दन्तकथा मे भी मिलती है, विमला भंडारी ने भी "सलूम्बर का इतिहास" पुस्तक मे इस घटना का जिक्र किया है, भंडारी ने रावत केसरीसिंह के द्वारा बादशाह के शैर को मारने और गणगौर जीत कर सलूम्बर लाने का ज़िक्र किया है लेकिन तंवर सरदारो का कोई जिक्र नही किया है, इतिहास के अनुसार रावतजी दिल्ली से सन् 1705ई. मे सलूम्बर लोटे थे अगर तंवर सरदार रावत केसरीसिंह के साथ सलूम्बर आए तो उनका सलूम्बर मे आने का समय भी सन् 1705ई. होगा।
सलूम्बर मे तंवर राजपूतों का प्रारंभिक इतिहास एवम् तर्कसंगत समय कि गणना
सलूम्बर मे तंवर राजपूतों का प्रारंभिक इतिहास मोन है, सन् 1705 ई. से लेकर सन् 1798 ई. के बीच तंवरो के इतिहास पर कोई जानकारी नही मिलती है।
सन् 1798 मे रावत भीमसिंह सिंह कि तरफ से तंवरो को 3 गांव का पट्टा दिया गया था, इस पट्टे से जानकारी मिलती है जब सलूम्बर को लूटने के लिए मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर की सेना चढ़ आई थी, तब तंवर खानदान के राजपूतो की टुकड़ी को उन्हें रोकने के लिए भेजा था, जिसमे तंवर राजपूत लड़ते हुए काम आये।
यह घटना कब घटी, सलूम्बर का इतिहास भी इस पर मोन है लेकिन पट्टे में मल्हार राव होल्कर का नाम लिखा हुआ है जिसका समय(सन्1731-66ई) था तो ये हमला जरूर सन् 1766 से पहले हुआ होगा, इतिहास के अनुसार सलूम्बर के रावत भीमसिंह ने सलूम्बर मे सोनार के पहाड पर भीमगढ के नाम से एक गढ बनवाया था, साथ ही ये भी जानकारी मिलती है कि मराठो की सेना जब लुटने के लिए आई तब सलूम्बर की प्रजा और राजपरिवार को इसी गढ मे रखा गया था। इस लडाई मे जो तंवर राजपूत काम आए उनके वंशज गुलजी तंवर और रघुनाथसिंह उम्र मे छोटे थे जब वे बडे हुए तो सन् 1798 मे जागीरी के पट्टे पुन अपने नाम करवाए, इस घटनाक्रम से ज्ञात होता है कि तंवरो का अस्तित्व सलूम्बर मे सन् 1766 ई से पहले भी था।
पट्टे से ये भी जानकारी मिलती है कि ये पट्टे पहले ही उनके पुर्वजो के नाम पर थे जिन्हे पुन: गुलजी तंवर ने अपने नाम पर कारवाए, इससे इतना तो पता चलता है कि पुराने पट्टे उनके पुर्वजो को होल्कर कि सेना के हमले(1766ई) से पहले मिले थे, होल्कर कि सेना से लडने वाले तंवरो के पुर्वजो का भी सलूम्बर मे इतिहास रहा होगा जिसके कारण उनको पहले जागीरी के पट्टे मिले थे, सलूम्बर मे तंवर जरूर होल्कर के हमले(1766) से 40-50 पहले आए होगे।
सलूम्बर में तंवरो का बलिदान
रावत भीमसिंह कालीन एक पट्टा व दो ताम्र पत्र प्राप्त होते है ,एक पट्टा
तँवर गुलजी (गुलाबसिंह) के नाम का संवत १८५५ आषद सूद तीज शुक्रवार का है,यह पट्टा
रावत भीमसिंह की और से उसके पूर्वज के बलिदान पर मिला। जब सलूम्बर को
लूटने के लिए मराठा सरदार होलकर की सेना चढ़ आई थी, तब तंवर खानदान के
राजपूतो की टुकड़ी को उन्हें रोकने के लिए भेजा ,जिसमे तंवर राजपूत लड़ते
हुए काम आये, इन तंवर ठाकुरो के देवल सलूम्बर तालाब के पास रेट में बने हुए है।
उनके इस शोर्यपूर्ण कार्य का मूल्यांकन रावत ने इस तरह किया की जितनी दुरी तक युद्ध में गोडे दोड़े ,उतने क्षेत्रफल के गाँव उन्हें इनाम के तोर पर जागीर में दिए गए। इस प्रकार रावत भीमसिंह ने अपने इन तंवर सरदार के वंशज गुलजी तंवर को तीन गाँव (रेट, हांड़ी ,डईला ,रेबारियोवाली मउडी की जागीर दी ,इस युद्ध में तंवर ठकुराइन सती हुई थी, जिनका स्थान तंवर पोल(सलूम्बर) के पास है।
उनके इस शोर्यपूर्ण कार्य का मूल्यांकन रावत ने इस तरह किया की जितनी दुरी तक युद्ध में गोडे दोड़े ,उतने क्षेत्रफल के गाँव उन्हें इनाम के तोर पर जागीर में दिए गए। इस प्रकार रावत भीमसिंह ने अपने इन तंवर सरदार के वंशज गुलजी तंवर को तीन गाँव (रेट, हांड़ी ,डईला ,रेबारियोवाली मउडी की जागीर दी ,इस युद्ध में तंवर ठकुराइन सती हुई थी, जिनका स्थान तंवर पोल(सलूम्बर) के पास है।
जागीरी के पट्टे
- ठा.गुलजी तंवर(गुलाब सिंह)- संवत् 1855(1798ई.) आषढ सुद तीज शुक्रवार को रावत भीम सिंह ने रेठ,हांडी,डईला और मऊडी की जागीर प्रदान की।
- ठा.रघुनाथसिंह तंवर- संवत् 1857(1800ई.) मगसा विद 14 को रावत भवानी सिंह ने दादरा(गांवडा) गांव की जागीर प्रदान की।
- ठा.भीम सिंह तंवर-एक पट्टा(ताम्र पत्र) संवत्1882 (सन्1825ई) आसोज सुद सप्तमी के दिन का है जिसमे मुण्डकटी* के बदले मे सलूम्बर के रावत पदमसिंह ने सरदार भीमसिंह तंवर को जागीर में केलाई गांव दिया जाने का जिक्र है सरदार को इसके साथ भोग, मांगणा आदि कर लेने के अधिकार दिये गये एवं पट्टे में निर्देश दिए गए कि इस जागीर के एवज मे सरदार आदेश की पालना करे व घोड़ा रखे। *मुण्डकटी का तात्पर्य फौज मे काम आने वाले जागीरदारो को उनके बलिदान के बदले उनके वंशजो को जागीरे दी जाती थी।
- ठा.राय सिंह तंवर- संवत् 1925(1868ई.) माघ विद 5 को इन्हे गांवडा, सरवड़ी और वेण की जागीर मिली, इनके दो पुत्र हुए-
- ठा.दलेलसिंह तंवर- रावत जोधसिंह द्वितीय (1862-1901) द्वारा दलेलसिंह तंवर को गांवडा, सरवड़ी, वेण तीनो गांवो के बदले मे गिर्वा तहसील के अर्न्तगत साठपुर गांव की जागीर सवंत 1939(1882ई) कार्तिक सूद चौथ के दिन दी गई, ठाकुर दलेलसिंह तंवर को भोग, वराड लेने के अधिकार दिए गये, घोडे रखने व घोडे सहित वक्त जरूरत नौकरी पर आने के आदेश दिये गये।
- ठा.तेजसिंह तंवर- रावत जोधसिंह द्वितीय (1862-1901) द्वारा गांव बोरज तँवरान का पट्टा भोग , मागणा सहित तेज सिंह तँवर नामक सरदार को जागीर में संवत 1933 (1876ई) पौष विद 13 के दिन दिया गया, इसमें घोड़े रखने, घोडे सहित वक्त जरूरत नौकरी पर आने के आदेश दिए गए, यह सरदार ठाकुर राय सिंह तंवर का पुत्र था जिसकी जागीर में तीन गाँव गांवडा, सरवडी और वेण थे।
साठपुर
ठा.दलेल सिंह तंवर
दलेलसिंह तंवर- साठपुर के पहले ठाकुर, जो कि ठा.रायसिंह तंवर के पुत्र थे, इनकी जागीरी में तीन गांव गांवडा, सरवड़ी और वेण थे, इन तीन गांव के बदले में सलूम्बर राव साहेब जोधसिंह द्वितीय ने ठा.दलेलसिंह को गिर्वा तहसील के अंर्तगत साठपुर गांव की जागीर सवंत 1939(1882 ई.) कार्तिक सूद चौथ के दिन दी गई, गांव साठपुर मीणा जाति बाहुल्य क्षेत्र था, दलेल सिंह को भोग, वराड लेने के अधिकार दिए गए, घोड़े रखने व घोड़े सहित वक्त जरूरत नौकरी पर आने के आदेश दिए गए, साथ ही इनको अपराधियों को दंड देने और उन्हें जेल भेजने का अधिकार भी दिया गया।
इनके तीन पुत्र हुए -(1) पदम सिंह, (2) किशोर सिंह,
(3) विरमदेव सिंह
इनमें किशोरसिंह और विरमदेवजी का वंश नहीं चला।
दलेलसिंह जी के तीन पुत्रीया थी जिनका विवाह करगेटा-चौहान (बाद मे खंडेला गोद गए), थडा- चुंडावत, कमला आंबा- चुंडावत के ठाकुरो से हुआ।
पदमसिंह तंवर- साठपुर के दुसरे ठाकुर, इनके दो पुत्र हुए
(1) चंदन सिंह (2) अनोप सिंह।
चंदनसिंह तंवर- साठपुर के तीसरे ठाकुर, ये रियासतकालीन सरकारी ऑफिसर थे इनका का वंश नहीं चला, इन्होंने छोटा भाई अनोपसिंह को गोद लिया।

[राव साहेब द्वारा ठा.चंदन सिंह को भेंट की गई तलवार]
विक्रमी संवत 1972 श्रावण बदी 9 (सन् 1915) को सलुम्बर राव साहब श्री ओनाड़ सिंहजी द्वारा ठाकुर साहब चंदन सिंहजी तँवर को चांदी की मूठ कि तलवार भेट की गयी, चंदनसिंहजी कि तुलना शेर से कि गयी है, तलवार पर शेर का चिन्ह अकिंत किया हुआ है।
अनोपसिंह तंवर- साठपुर के चौथे ठाकुर, साठपुर जमीन विवाद को लेकर वहा के मीणो ने इनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इनके के दो पुत्र हुए-(1) अमरसिंह, (2) अर्जुनसिंह
इनकी एक पुत्री थी जिनका विवाह आजनी- चुंडावत मे हुआ।
ठा.अमरसिंह जी बोरज तंवरान रहे और ठा.अर्जुनसिंह जी सलूम्बर(तंवर पोल) रहे-रेेेेठ और साठपुुर जागीर इनके पास
रखी, वर्तमान में सलूम्बर और बोरज तंवरान में ठा.अनोपसिंह जी के ही वंशज हैं।
विरमदेव तंवर
रावत जोधसिंह सलूम्बर के समय ठा.दलेलसिंह तंवर(साठपुर जागीर का ठाकुर) का पुत्र विरमदेव तंवर बड़ा पराक्रमी और निशानेबाज योद्धा हुआ जो उड़ते हुए पक्षी पर बन्दुक से निशाना साधता था। एक बार रावत का घोडा बेकाबू हो गया था जिसे विरमदेव ने काबू में किया, इसपर रावत ने उसे २०० रूपये नकद एवं एक बन्दुक पुरूस्कार में दी, यही नहीं यह सरदार नट विधा में बड़ा प्रवीण था। जब दशहरे के दिन रावत की सवारी निकलती थी तब यह सवारी के दोरान घोड़े पर उल्टा बैठकर निकलता था। गणगोर के पर्व पर बल्लम द्वारा भैंसे (पाडा )का वध करता था। उस समय सलूम्बर में गांवडा पाल के भीलो ने उतपाद मचा रखा था, वे चोरी ओर डकैती करते थे तथा रावत का हुक्म भी नहीं मान रहे थे। रावत ने जब विरमदेव तंवर का पराक्रम देखा तो उन्होंने विरमदेव को गांवडा के भीलो को शांत करवाने के लिए भेजा।
बोरज तंवरान
ठा.तेज सिंह तंवर
तेजसिंह तंवर- बोरज तंवरान के पहले ठाकुर, रावत जोधसिंह द्वितीय द्वारा गांव बोरज तंवरान का पट्टा भोग, मागणा सहित तेज सिंह तँवर नामक सरदार को जागीर में संवत 1933 (1876 ई.) पौष विद 13 के दिन दिया गया, इसमें घोड़े रखने, घोडे सहित वक्त जरूरत नौकरी पर आने के आदेश दिए गए, यह सरदार ठा.रायसिंह तंवर का पुत्र था जिसकी जागीर में तीन गाँव गावड, सरवडी और वेण थे।
अमरसिंह प्रथम-बोरज तंवरान के दूसरे ठाकुर।
कुरसिंह तंवर- बोरज तंवरान के तीसरे ठाकुर, जो निसंतान रहें, इनके ठा.अनोप सिंहजी का पुत्र अमर सिंह जी गोद रहें।
अमरसिंह द्वितीय- बोरज तंवरान के चौथे ठाकुर, अम्बा माता तालाब बनवाने के लिए इन्होंने कई प्रयास किए, इन्होंने कसम खाई थी कि जब तक अम्बा माता तालाब नही बनेगा तब तक वो जूते-चप्पल नही पहनेंगे और ना ही अपने बाल(केश) कटवायेंगे। गांव मे इन्होंने एक मेडी बनवाई ऐवम् कुआँ खुदवाया।
इनके तीन पुत्र हुए-(1) ठा.प्रताप सिंह (2) चत्तर सिंह (3) हिम्मत सिंह
इनके एक पुत्री हुई जिनका विवाह दामडी-चंपावत राठोड मे हुआ।
कुलदेवी मंदिर-बोरज तंवरान
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[कुलदेवी मां चिलाय/योगेश्वरी] |
वंशावली
सलूम्बर के तंवरो का वंशवृक्ष
(बोरज तंवरान)
संदर्भ
- विमला भंडारी, सलूम्बर का इतिहास पृष्ठ-140,159,191,321,366,443
- ठिकाना कालीन जागीरी के पट्टे
- ठा.अर्जुनसिहजी तंवर से प्राप्त पुराने दस्तावेज़
- बड़वा गुलाबजी आसलपुर का पत्र सवत् 1925 (सन्1868ई)
- राजस्थान के ठिकाणो एवं घराणो की पुरालेखीय सामग्री पृष्ठ-41,42